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#कुमार_विशू_✍️_से एक ग़ज़ल पेश है आपके लिए ****************************** अब शिकायत नही है रंगत से फासले बढ़ गए बग़ावत से देख दहलीज़ पे खड़ा ऐसे क्या करूं गुफ्तगू नज़ाकत से टूटने के लिए बचा ही क्या आज तक था संभाला शिद्दत से इक ज़माना भी ऐसा गुज़रा था चाहता दिल उसे था हसरत से पास जाकर घुटन सी हो जाती वक्त गुज़रा कभी जो फ़ुरसत से ख़ुद से ही कर ली ख़ुद-कुशी अपनी मैं परे-शाॅं था अपनी गुरबत से जल गये ख्वाब ख़्वाहिशें अपनी ख़ाक में मिल गया अदावत से मुद्दतों बाद आज फिर जो मिला ज़ख्म गहरा मिला यूं तोहमत से दर्द ग़म रंज और ये ख़ामोशी तंग विशू आ गया शराफ़त से कुमार विशू ✍️ ******************************

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