10 साल से मीडिया,लेखन और साहित्य के क्षेत्र में कार्यरत..
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माह दिसंबर बदन में जगने लगे है सिहूरन कुछबर्फीली हवाओं से लगने लगे हैं ठिठुरन कुछधीरे धीरे बदन पर चढने लगा है वसन का तहजेसे जालिम आज़ादी से होने लगे हैं बिछुड़न कुछधीरे धीरे चढ़ी दुपहरी जैसे रात अमावस की