कामचोर को टोंकते, निकल जायेगा दम, उसका काम करे कोई और, वह बैठे हो बेशर्म। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"
कामचोर की आँख में, होत सुअर का बाल, देख अंदेशा काज का, लेत बहाना ढ़ाल । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नीलपदम्"
कामचोर का साथ यदि, कभी तुम्हें मिल जाय, नाश करे तासे पहले, भागो सिर रख कर पाँव । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
कामचोर की मनः स्थिति, विकट अनोखी होय, तरु पीपल उगा दीवार पर, ये कहे छाया होय । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
कामचोर ने है किये, आजीवन येही काम, हर स्थिति को कोसना, खाना, सोना, आराम । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
कामचोर देखे सदा, कहाँ बहाने चार, झूठे दर्द, झूठी दलीलें, हैं उसके औजार । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
क्या ग़रीब की दोस्ती, क्या ग़रीब का बैर, दो जून की रोटी को जो, रहे मनाता खैर। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
निज माटी की सोंधी महक, होती न जिनके भाग, एक हूक उठती सदा, एक सदा सुलगती आग। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
पोर-पोर तक पीर के, जब पहुँचे सन्देश, एक भटकता यायावर, दौड़ पड़ा निज देश। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
2024 के ओलिंपिक खेल पेरिस में होंगे । पेरिस ओलिंपिक का शुभंकर है फ्रीज। पेरिस 2024 का दृष्टिकोण दर्शाता है कि खेल जीवन बदल सकता है, शुभंकर खेल के माध्यम से एक क्रांति का नेतृत्व करके एक
दुष्ट तजे न दुष्टता, लो जितना पुचकार, सठे साठ्यम समाचरेत, तभी सही व्यवहार। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
पुस्तक इतना जानिये, सबसे बड़ी हैं मित्र, इनकी संगत यों यश बढ़े, जैसे महके इत्र । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
देख पताका फहरती, कियो नहीं अभिमान, क्षणभंगुर सब होत है, त्वचा, साँस, सम्मान । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
पति पथिक बन कर रहा, पत्नी सम्मुख रोज, सम्बन्धों से ऐसे में, खो जाते हैं ओज । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
चालीस बरस की चाकरी, चूल्हा बच्चों के चांस, शनै: शनै: रिसते रहे, रिश्ते - जीवन - रोमांस । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
एक गृहिणी को दे सकें, वो वेतन है अनमोल, कैसे भला लगाइये, सेवा, ममता का मोल । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
मंदिर तब ही जाइये, जब मन मंदिर होय, तब मंदिर क्यों जाइये, जब मन मंदिर होय। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
महती बातें तब करो, जब मन होय न क्लेश, नहीं ते होवे सब गुड़गोबर, कुछ भी बचे न शेष । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
आँखों की शोभा बढ़े, जब लें काजर डार, सुथरा मैले के सामने, और लगे उजियार । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "
तारे आँखों के बना, देख-भाल पहचान, तिनका छोटा आँख में, ले लेता है जान । (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव " नील पदम् "