मैं आँखों से तेरे होठों की मिठास चख लूँ?
तू कहे तो आज रात तुझे दिल के साथ रख लूँ?
दे दूं तुझे खुशियों का शालीमार बाग ही
तेरे दर्द के बंजर को अपने पास रख लूँ?
बिछौना तो लगा दिया क्या एक लिहाफ रख लूँ?
और कहे तो घोलकर तेरी साँसो में साँस रख लूँ?
देख लूँ खुद को भी मैं तेरी निगाह से?
इस पहर के लिए तेरी आँखों में आँख रख लूँ?
वक्त की स्याही से जो गजलें लिखी मुझपर
इजाजत हो अगर तो मैं वह किताब रख लूँ?