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समय की गति

7 सितम्बर 2022

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समय ,
चलता आया है ,
सृष्टि प्रारंभ से ,
निर्बाध गति से ।
समय चलता ही रहता है ,
समय के साथ ही ,
सभी को चलना पड़ता है ।
जो पीछे मुड़कर ,
देखता है कभी,
समय छोड़ देता है ,
उसे वहीं तभी ।
समय उसी का होता है ,
जो उसकी कीमत समझता है ।
उसकी ताल से ताल मिलाता है ।
समय देता है यदि पीर ,
तो मरहम भी वही बनता है ।
समय ही हमें ,
देता झंझावतों से उबरने की शक्ति,
हम मजबूत बनाता है ,
समय सब कुछ पीछे छोड़ता ,
निरंतर आगे ही बढ़ता जाता है ।

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12 सितम्बर 2022

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रचनाएँ
कुछ मन के भाव
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इसमें दैनिक प्रतियोगिता में दिए गए विषय पर कलम चलाने का प्रयास कर रही हूँ
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समय की गति

7 सितम्बर 2022
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समय ,चलता आया है ,सृष्टि प्रारंभ से ,निर्बाध गति से ।समय चलता ही रहता है ,समय के साथ ही ,सभी को चलना पड़ता है ।जो पीछे मुड़कर ,देखता है कभी,समय छोड़ देता है ,उसे वहीं तभी ।समय उसी का होता है ,जो उसकी

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रेलयात्रा

9 सितम्बर 2022
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रेल यात्रा का विषय देखकर मुझे वो घटना याद आ गयी जो आपसब के साथ साझा करने का मन किया।मेरे पापा के साथी प्रोफेसर थे वर्मा अंकल( अब नहीं रहे )वो अपनी पत्नी के साथ रेलयात्रा कर रहे थे।आंटी जी बैठी थीं और

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बचपन की दोस्त

13 सितम्बर 2022
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मेरे बचपन की दोस्त , मेरी सहेली ,जिसका नाम था निधि 😊हमारी दोस्ती तब हुई थी जब हम नर्सरी में थे । वो रोज एक गुलाब का फूल लाती और मुझे देती ।हमारी दोस्ती भी उस गुलाब के फूल जैसी थी ,तरोताजा,खिली

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मानवीय पूंजी

15 सितम्बर 2022
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मानवीय पूँजी ,तो हैं मनुष्य के संस्कार,उसके आचार,विचार ,उसका व्यवहार ,यही असली पूंजी है जो ,आपसे कोई चुरा न पाता है,यही पूंजी है वास्तविक ,जिसके बल पर ही इंसान,सबके मन में अपना ,एक अच्छा व अटल स्थान ब

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पितृपक्ष

16 सितम्बर 2022
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पितृपक्ष , एक पखवारा जब ऐसा माना जाता है कि हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं ।उनके लिए इस पखवारे भर के लिए स्वर्ग के द्वार खोल दिए जाते हैं ,और वो अपनों से मिलने ,उन्हें अपने आशीष देने के लिए आते है

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मैं नारी हूँ

17 सितम्बर 2022
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मैं नारी हूँ ,हाँ नारी हूँ।मत अबला,समझो मुझको,मैं सबपर ,भारी हूँ।हाँ नारी हूँ।मैं सकल,सृष्टि की उत्पादक,मैं ही ,दया,क्षमा,त्याग,ममता की मूरत,मैं सुता,मैं अर्धांगिनी,मैं ही हूँ पयस्विनी,नर दीपक,तो मैं

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अंधविश्वास

18 सितम्बर 2022
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अंधविश्वास का कोई निश्चित कारण न होता है ।यह मन का ऐसा विश्वास है जो व्यक्ति अपने मन में मान बैठता है और उससे निकलना ही न चाहता ।अंधविश्वास का अर्थ ही हैकिसी चीज़ पर आँखें मूँद कर ,बिना विवेक का प्रयो

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नारी शक्ति का दुर्पयोग

20 सितम्बर 2022
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कहाँ रहे वो पुरुष संत सरीखे,कहाँ उनका वो साधु ह्रदय !कहाँ आँखों में निश्छलता वो ,कहाँ सद्पथ पर उनकी सुर लय!!शुचिता से कोसों दूर ,'नूतन' वे नर तो हुए कपूर ,नर आज के तो अत्याचारी हैं ,काम वासना में तप्त

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