नगरपालिका का मैदान सजावटी रंगबिरंगा पेड़ पौधों पत्तियों फूलों खिलौना से चिल्ड्रन पार्क का रूप ले लिया था बच्चों का शोरगुल किशोर किशोरी ढेर सारी मम्मी यों की हंसी मजाक ठहाके से वातावरण गुंजायमान था इतने में 4 साल की छोटी बच्ची दौड़ते हुए गुब्बारे वाले के पास जा रही थी और उसके पीछे मम्मी रितु गुब्बारे वाले के पास दौड़ते दौड़ते अचानक रुक सी गई दौड़ने के क्रम में दिल की धड़कन की रफ्तार बढ़ गई थी पर रुकने के बाद दिल की धड़कन की रफ्तार और बढ़ गई थी देखकर अवाक हो गई कि इंजरिंग पड़ा हुआ रितेश आज गुब्बारा बेच रहा था रितेश भी आवाके से देख रहा था और मारे शर्मिंदगी की पराकाष्ठा में था अ 5 साल के बाद रितु से पहली मुलाकात इस हालत में हुई थी इस स्थिति में तो वह मर जाना पसंद करता लेकिन बेरोजगारी क्या नहीं कराती अपने को संभालते संभालते रितेश ने कहा यह तुम्हारी बेटी है बड़ी प्यारी है और गुब्बारा उसके हाथ में देते हुए नजर भी नहीं मिला पा रहा था शर्मिंदगी से इतने में ऋतु के भाईअमर और ऋतु का पति जय साथ में आ गए हैं पैसा देना चाह रहे थे ₹20 लेकिन रितेश पैसा लेने से इनकार करते हुए दूसरी और गुब्बारों का गुच्छा लेते हुए आगे बढ़ गया अमर ने अपनी दीदी के कान में चुपके से कहा यह था तुम्हारा पसंद गुब्बारा वाला इंजीनियर इसके लिए तुम पूरे घर को उठा ली थी असमंजस रितू आज की शाम बुझिल थी रितेश शर्मिंदगी के मारे रात भर सो नहीं पा रहा था ख्याल कर रहा था किस तरह से इंजरिंग के कितने इंटरव्यू दिए लेकिन अभी तक कोई रिजल्ट नहीं आया था मजबूरी में इधर रीतू भी परेशान थी सोच रही थी एक ऐसा लड़का का हाथ थामने जा रही थी जो गुबारा बेच रहा है बड़ी मुश्किल से दिन बिताता शायद मैं उसके साथ रहती तो सफल हो भी जाता खैर जो हुआ अच्छा हुआ सवेरा हुआ था रितु चाय ले के रसोई से निकले थी इधर जोर-जोर से अमर अखबार पढ़ रहा था जिसमें लिखा था दुर्ग का लाल रितेश को दो करोड़ का पैकेज इतना सुनकर रितु जैसे झूंमें सी गई थी चाय की प्याली प्याली टकराते हुए लव लव आ रही थी लड़ खड़ा-खड़ा रही थी अंदर से दिल की धड़कन रफ्तार चाय में समाहित था बहुत खुश शायद अंतर ही मन खुशी से झूम उठी थी प्यार की जीत जो हुई थी कुछ नहीं पा कर भी पा जाना शायद प्यार है त्याग समर्पण से प्रेरित हर हाल में उनकी खुशी की तमन्ना ही सच्चा प्रेम है