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इश्क़ कमीना

14 नवम्बर 2022

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मोबाईल में ग्रेट ग्रैण्ड मस्ती फिल्म में षाइनी मेड का सीन देखता हुआ मोन्टी मन ही मन गुदगुदा रहा था और एक्साईटेड होते हुए सोचता है। अगर ऐसी मेड मेरे पास भी होती तो क्या मजा होता! इंस्टा, फेसबुक, व्हाटसऐप और इसके जैसी न कितनी सोषल साईट्स होंगी, जिस पर मोन्टी की प्रोफाईल न हो। या यूं कहें कि मोन्टी पूरी तरह से सोषल साईटस का दिवाना था और दीवानगी हो भी क्यों न। आखिर पूरी दुनियां की चमक-दमक जो यहां भरी पड़ी है और खुद के एटीट्यूट स्टेटस डालकर भी तो सबको इंप्रेस करना कम खुषी तो नहीं देता। ऊपर से आपको देखने वाले ज्यादा से ज्यादा यूजर्स और उनके लाईक और सबसक्राईब को मोह तो कोई सोषल साईट चलाने वाला ही बता सकता है। तभी अचानक बाहर से दरवाजे की घण्टी बजती है। तो पहले मोन्टी गेट के कैमरा चैक करता है कि आखिर कौन है। गेट पर खड़े गार्ड से मोन्टी पूछता है कौन है, इस समय? 

गार्ड - साहब कोई लड़की आई है, मेड की नौकरी का पूछने।

मोन्टी - उसे कैमरे के सामने आने को कहो।

लड़की कैमरे के सामने आती है, जो मध्यम कद की बेहद ही खूबसूरत लड़की थी। गोरा रंग और करीने से पहने कपड़ों से वो मेड कम और षायनी अधिक लग रही थी। 

मोन्टी - ठीक है, उसे अन्दर भेज दो, बात करते हैं, कहकर नेटवर्क कट करता है।

अब मन ही मन मोन्टी खुष हो रहा था, कि वाह आज का दिन तो कमाल का है। आज अगर कुछ और मांगता तो वो भी मिल जाता। तरह-तरह के मन में ख्याली पुलाव पकाने लगता है। तभी लड़की अंदर आ जाती है।

मोन्टी - हां तो बताओ, क्या नाम है तुम्हारा, क्या-क्या काम जानती हो और क्या पगार लोगी?

लड़की - धीमी आवाज में सकुचाई सी बोलती है, जी मेरा नाम रिया है। मैं बहुत ही गरीब परिवार से हूं। घर में माता-पिता और एक बहन है। पिता मजदूरी करते हैं। मैं घर के सभी काम जानती हूं। खाना, बर्तन, झाड़ू सब कर सकती हूं। पगार जो भी आपको सही लगे, वो आप दे देना, मुझे तो ये भी नहीं पता कि इस काम की कितनी पगार मिलती है। पहली बार है, षायद इसलिए।

मोन्टी - कितनी पढ़ी हो?

लड़की - 8 क्लास तक पढ़ी हूं। लेकिन आप चिन्ता न करें, घर के सारे काम मैं कर लूंगी और आप जो भी कहें, वो भी।

मोन्टी - मन ही मन खुष होते हुए, ठीक है, कल से आ जाओ सुबह से षाम तक यहीं रहना होगा। महीने के 2000 और रहना-खाना यहीं मिलेगा। ठीक है।

लड़की - ठीक है, साहब। मैं कल से आती हूं।

मोन्टी - लड़की को ऊपर से नीचे तक देखते हुए, ठीक है कल सुबह 7 बजे आ जाना और समय की पाबन्दी मुझे पसन्द है इसलिए देर नहीं होनी चाहिए। रौब जमाते हुए कहता है। 

लड़की - जी साब, ठीक है।

मोन्टी मन ही मन सोचता है, लड़की तो भोली जान पड़ती है और साथ में खूबसूरत भी है, अपनी तो निकल पड़ी।

अगली सुबह लड़की टाईम से पहुंच जाती है और चाय-नाष्ता बनाकर मोन्टी को देती है। मोन्टी खुषी-खुषी चाय नाष्ता करता है, और बीच-बीच में रिया को भी देखता रहता है। आज रिया और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। सफेद सूट जो फिटिंग वाला था। रिया को और भी खूबसूरत बना रहा था। साफ-सफाई करने दौरान बीच-बीच उसके गले से दुपट्टा गिरता है तो मोन्टी की नजर वहीं जाती है, जहां देखकर उसका दिल जोर से धड़कने लगता है और वो मन ही ललचाने लगता है। रिया भी न जाने क्यों, बीच में उसकी ओर देखकर धीमे से मुस्कुराती है और अपना काम करने लगती है और दुपट्टे को साथ वाले मेज के ऊपर रखकर बेतकल्लुफी से मोन्टी के सामने बैठकर सफाई करने लगती है और बीच-बीच मोन्टी की ओर देखकर मुस्कुराते हुए नजरे चुराने लगती है। 

ऐसा देखकर मोन्टी मन ही मन पागल होने लगता है और सोचता है कि रिया जल्दी ही इसके चंगुल में फंस जायेगी और वो दिन कोई और नहीं आज षाम का ही दिन होगा।

कुछ काम की बात कहकर मोन्टी उस समय बाहर चला जाता है और षाम को उसके आने तक रिया को वहीं रूकने को कहता है।

षाम होते ही मोन्टी के हाथ में कुछ बैग होते हैं, जिन्हें लेकर मोन्टी घर में आता है, और रिया को आवाज लगाते हुए बुलाता है। जी साहब, क्या बात है, रिया कहती है।

मोन्टी - आज तुम्हारा पहला दिन है, इसलिए आज तुम्हारे लिए मैं कुछ लाया हूं।

रिया - जरा दिखाओ तो सही, क्या लायें हैं आप।

मोन्टी - बैग खोलता है, जिसमें तीन खूबसूरत ड्रैस होती हैं, जिन्हें देखकर रिया खुष होते हुए कहती है, साहब क्या ये मेरे लिये है?

मोन्टी - बिल्कुल, मैं इतना भी बुरा नहीं, जितना लोग समझते हैं। अपने यहां काम करने वालों को मैं अपने परिवार का हिस्सा मानता हूं औघ्र मन लगाकर काम करने वालों की पूरी तरह सपोर्ट भी करता हूं। 

रिया - खुष हो जाती है।

मोन्टी - दूसरे बैग से पिज्जा, बर्गर और अन्य बहुत सारी चीजें निकालता है, उसमें एक दिल के आकार का केक भी होता है। जिसे सामने मेज में रखकर मोन्टी कहता है। यह आज के पहले दिन का सेलीब्रेषन। अब तुम्हें अक्सर ऐसी चीजों की आदत डाल लेनी चाहिए। ये सब यहां होता रहता है।

रिया के अन्दर जाते ही मोन्टी एक बैग से षराब की बोतल निकालता है और उसे कोल्ड ड्रिंक की आधी बोतल में उसे पूरा भर देता है। ताकि आज की षाम वो रिया के साथ रंगीन कर सके। तभी थोड़ी देर में रिया मोन्टी द्वारा दी गई ड्रेस पहनकर बाहर आती है और केक काटकर मोन्टी को खिलाती है, तभी मोन्टी कोल्ड ड्रिंक दो गिलास में डालकर रिया को पीने के लिए देता है और एक खुद पीता है। देखते ही देखते पूरी कोल्ड ड्रिंक दोनों पी जाते हैं और रिया बेहोष हो जाती है। जिसके बाद मोन्टी पूरी रात रिया के साथ अपने बेडरूम में रात रंगीन करता है और रिया बेहोष पड़ी रहती है। अगली सुबह जब रिया की आंख खुलती है तो मोन्टी उसे रात की बात के बारे में चुप रहने के लिए कहता है और उसे ऐसे खुष करते रहने को बोलता है, जिसके बदले रिया को पैसा देने का वायदा करता है और रिया उस समय चुप रहकर हामी भर देती है। 

मोन्टी बहुत खुष था, उसका तो जैसे सपना पूरा हो गया था। सारा दिन वह आने वाली षाम के सपने देखता है कि एक दिन पहले बेहोषी में रिया के साथ कुछ ज्यादा मजा नहीं आया लेकिन आज तो पूरा मजा आयेगा जब उसकी रजामन्दी में वो सब दुबारा होगा। अब क्या कहने। लेकिन उसकी खुषी जल्दी ही उड़ने वाली थी। षाम को घर पहुंचते ही मोन्टी देखता है, कुछ लोग उसके घर के अन्दर बैठे हुए हैं, एक अधेड़ उम्र का आदमी जिसकी कद काठी अच्छी थी और एक जवान नवयुवक जो कसरती षरीर वाला जान पड़ता था। टेबल पर बैठे बड़े आराम से चाय पी रहे थे और रिया उनके साथ बैठी इस प्रकार बातें कर रही थी जैसे वो उसी का घर हो।

मोन्टी रिया से पूछता है कि यह कौन हैं? 

रिया - इनसे मिलो, ये मेरे पापा और ये मेरा भाई है, कल रात जो भी हुआ। यह सब जान चुके हैं।

मोन्टी - हैरान होते हुए, इन्हें कैसे पता।

रिया - तुम बड़े मासूस हो मोन्टी, सीधी सी बात है, कैमरे से। जो तुम्हारे बैडरूम में मैने ही कल लगाया हुआ था। जिसकी रिकार्डिंग सीधे इनके मोबाईल में हो रही थी कि कैसे तुमने बेहोषी की हालत में मेरे साथ बलात्कार किया और सुबह यह सब किसी को न बताने की धमकी भी दी।

मोन्टी - गुस्से में पगलाते हुए, यह सब क्या बदतमीजी है? निकल जाओ मेरे घर से।

रिया का बाप - बदतमीजी हमने अभी की नहीं है, अगर बदतमीजी में आ गये तो तुम्हारी अब खैर नहीं और एक बात तुम्हें और बता दें तुम्हारे पर एक बन्दूक भी थी न।

मोन्टी - क्यों, इससे तुम्हें क्या मतलब?

रिया का बाप - क्योंकि, वो भी अब हमारे पास है, जिसका लाईसेन्स तुम्हारे नाम से है। समझ तो गये होंगे तुम, हमारा क्या मतलब है।

मोन्टी - क्या चाहते हो तुम, मेरी जान बख्षने का।

रिया का बाप - बस 50 लाख का इंतजाम कर दो, वो भी एक दिन में। नही ंतो.....

मोन्टी - नही ंतो क्या करोगे।

रिया का बाप - कुछ नहीं, तुम्हारी उसी पुरानी गर्लफ्रेंड का षिकार करेंगे, जिससे तुम्हारा पिछले महीने ब्रेकअप हुआ था। स्टेटस में देखा, तो पता चला। उसकी पूरी जन्म कुण्डली है हमारे पास, और हां उसकी ही नहीं तुम्हारे सभी पुराने दोस्तों और खासकर दुष्मनों की भी। जिन्हें तुमसे खतरा हो सकता है, समझ रहे हो न। कमीनी हंसी, हंसते हुए बोलता है।

मोन्टी अब पूरी तरह से फंस चुका था। उसकी वीडियो जो उसे बलात्कार के केस में फंसाने के लिए काफी थी और इससे बड़ी मुसीबत उसकी लाईसेंसी बंदूक जो अब उनके हाथों में थी, जिससे वो लम्बा फंस सकता था। मोन्टी षिकारी बनने के चक्कर में हुस्न के जाल में ऐसा फंसा जिसे अब कोई नहीं बचा सकता था। जिसकी स्थिति न जीते बनती थी और न मरते......


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रचनाएँ
कही-अनकही कहानियाँ
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विज्ञान और धर्म (बुद्धि और हदय) में मात्र इतना ही अंतर है कि विज्ञान मानता है काला रंग वास्तव में कोई रंग न होकर समस्त रंगों की अनुपस्थिति मात्र है। जहां कोई रंग नहीं वहां काला अर्थात् अंधकार ही होगा । इसी प्रकार सफेद रंग वास्तव में सभी रंगों के मिश्रण से प्राप्त होता है। यही भौतिकी के सिद्वान्त कहते हैं। इसके विपरित इसी विषय में हदय का प्रयोग करने वाले कला प्रेमी लोगों का इसके विपरित ही तर्क है। उनके अनुसार वास्तव में काला रंग समस्त रंगों के मिश्रण का नाम है। आप किसी चित्रकार से पूछिए कि उसे काला रंग बनाने के लिए क्या करना होगा, उत्तर में यही मिलेगा कि समस्त रंगों को मिला दीजिए, जो रंग प्राप्त होगा वह काला और समस्त रंगों की अनुपस्थिति से सफेद रंग प्राप्त होता है। यहां दोनों ही अपने-अपने स्थानों पर बिल्कुल सही हैं। दोनों वर्ग अनेकों प्रकार के प्रयोग करने के पष्चात ही इस निर्णय तक पहुंचे हैं जिसका गलत होने की कोई संभावना नहीं। मात्र दृष्टि का अंतर है। सही दोनों हैं। यह दोनों को मानना भी होगा कि वैज्ञानिक और चित्रकार दोनों ही सही हैं। विरोध को कोई प्रष्न नहीं और कभी इस विषय को लेकर किसी ने इनके मध्य कोई लड़ाई भी न सुनी होगी। मानव चेतना भी इन्ही चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिसमे अक्सर मनुष्य का अंतर्मन सदा आपस में काले-सफेद को लेकर लड़ता रहता है, सदा दोनों और चलने वाली इस खींच तान के बीच कभी भी यह सुनिष्चित नहीं हो पाता कि वैज्ञानिक सही या चित्रकार? मानव मस्तिष्क के भीतर चलने वाले द्वन्द को इस पुस्तक में क्रमबद्ध पिरोया गया है, जिसमे उसके अंतर जगत को प्रतिबिंबित करता है....
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